वन, नदियां, पर्वत व सागर,अंग और गरिमा धरती की,इनको हो नुकसान तो समझो,क्षति हो रही है धरती की।
हमसे पहले जीव जंतु सब,आए पेड़ ही धरती पर,सुंदरता संग हवा साथ में,लाए पेड़ ही धरती पर।
पेड़ -प्रजाति, वन-वनस्पति,अभयारण्य धरती पर,यह धरती के आभूषण है,रहे हमेशा धरती पर।
कलयुग में अपराध काबढ़ा अब इतना प्रकोपआज फिर से काँप उठीदेखो धरती माता की कोख !!
समय समय पर प्रकृतिदेती रही कोई न कोई चोटलालच में इतना अँधा हुआमानव को नही रहा कोई खौफ !!
मधुरिमा के, मधु के अवतारसुधा से, सुषमा से, छविमान,आंसुओं में सहमे अभिरामतारकों से हे मूक अजान!सीख कर मुस्काने की बानकहां आऎ हो कोमल प्राण!